Paryavaran Pradushan ke Prakar Par Nibandh
यहाँ पर आपको Paryavaran Pradushan ke prakar par nibandh, पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध में यहाँ आपको प्रदूषण के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी. यहाँ पर प्रदूषण की परिभाषा से लेकर प्रदूषण के प्रकार तक सभी जानकारी डिटेल में दी गयी है. वायु, जल एवं मिट्टी के भौतिक, रसायनिक तथा जैविक लक्षणों कावह अवांछनीय बदलाव जो मनुष्य और उससे संबंधित लाभदायक जीव धारियों के जीवन, औद्योगिक संस्थानों की प्रगति एवं खेती आदि को नुकसान पहुंचाता है वह प्रदूषण कहलाता है।
क्या आप जानते हैं कि मनुष्य पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु है? इसके क्रियाकलापों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले प्रतिकूल परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं। पृथ्वी एक बहुत बड़ी और जटिल पारितंत्र है इसको जीवमंडल कहते हैं। हरे भरे पेड़ पौधे भोजन का निर्माण करते हैं और जीव प्रत्यक्ष या परोक्ष के रूप से भोजन के लिए हरे पौधों पर निर्भर रहते हैं।
प्रकाश संश्लेषण में हरे पादप कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके ऑक्सीजन देते हैं। वातावरण में सभी घटक संतुलित रूप में रहते हैं. एक निश्चित सीमा तक पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों को तुरंत स्तर करने की क्षमता पारितंत्र में होती है।
जब जीप विशेषकर अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण के किसी घटक का अधिक उपयोग करके उसे असंतुलित कर देते हैं तो इससे पूरा पर्यावरण प्रभावित होता है. यह स्थिति जीवो के लिए नुकसानदायक होती है और यही स्थिति पर्यावरण प्रदूषण कहलाती है।
प्रदूषण कितने प्रकार के होते हैं?
प्रदूषण मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार
का होता है-
1. प्रदूषण मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार का होता है-
1. वायु प्रदूषण
2. जल प्रदूषण
3. मृदा प्रदूषण
4. ध्वनि प्रदूषण
5. रेडियोधर्मी प्रदूषण।
1: वायु प्रदूषण : (Air pollution in Hindi)
Paryavaran Pradushan Par Nibandh में अब बात करते हैं वायु प्रदुषण की, वायु में
ऑक्सीजन को छोड़कर किसी भी गैस की सांद्रता संतुलित अनुपात से अधिक होने पर वायु
सांस लेने के लिए अनुपयोगी हो जाती है।
प्रकाश संश्लेषण में हरे पौधे ऑक्सीजन देते हैं और सभी श्वसन में ऑक्सीजन लेते हैं एवं कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं . इस तरह दोनों में संतुलन बना रहता है।
मानव अपनी सुख-सुविधाओं के लिए वायुमंडल को असंतुलित कर देता है.औद्योगिक क्रांति के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है औद्योगिक कारखानों से निकलने वाली गैसतथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड ओं के कारण वायु प्रदूषण होता है।
वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण स्वचालित वाहनों से निकलने वाला धुआं भी है जिसमें कार्बनतथा अन्य विषैली कैसे होती हैं।
वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत:- दहन, औद्योगिक अपशिष्ट, रेडियोधर्मी विकिरण, सामाजिक क्रियाकलाप।
2: जल प्रदूषण किसे कहते हैं ?
जल प्रदूषण आजकल एक गंभीर समस्या है. हमें हमेशा जल का संरक्षण करना चाहिए तो इसीलिए हम यहाँ पर Water pollution in Hindi को detail में जानेगें।
जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक, अकार्बनिक पदार्थ, गैस से तथा अन्य हानिकारक पदार्थ खुले रहते हैं जिन से जल प्रदूषण होता है। जल प्रदूषण से हैजा, टाइफाइड, संग्रहणी आदि रोग हो जाते हैं।
घरेलू तथा औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों के कारण नदियों तालाबों काजल प्रदूषित हो जाता है समुंदर में तेल के जहाजों की दुर्घटना आदि से जो तेल बिखरता है उससे संबंधित जीवो पर प्रभाव पड़ता है उससे भी जल दूषित हो जाता है ; अर्थात जल का दूषित होना ही जल प्रदूषण कहलाता है।
जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत
1. औधोगिक कारखानों से निकला हुआ सीसा, पारा, आदि के कार्बनिक व अकार्बनिक ख़राब पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं। ये प्रदूषक खाद्य श्रंखला से जीवों व मानव में पंहुचकर मानव व पदार्थों की जीवन क्रियाओं को प्रभावित करते हैं. ज्यादातर इनसे आँखे व तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं।
2. खेती में उपयोग होने वाले रासायनिक कीटनाशक पदार्थो का असर जलीय पादपो पर होता है जिस से उनकी प्रकाश संश्लेषण की ताकत कम होती है जिसकी वजह से जल में ऑक्सिजन की कमी होने की वजह से जलीय जीवन पर गलत असर पड़ता है।
3. जमीन पर गिरने वाले पेट्रोलियम पदार्थ वाष्पीकृत होकर वायुमंडल में पहुँचते हैं जैसे -एथिलीन, पेट्रोल आदि. इस से तेल जल की सतह पर पहुँच कर जलीय जीवन पर असर डालता है और ऑक्सिजन की कमी हो जाती है जिस से मछलियाँ आदि मर जाती हैं।
4. वाहितमल पदार्थों से पीलिया, टाईफाइड, हैजा, मलेरिया आदि रोग होने की संभावना हो जाती है। कभी कभी जल प्रदुषण से होने वाले रोग महामारी का रूप ले लेते हैं जिस से बहुत अधिक मौते भी हो जाती है।
6. घरेलु अपमार्जक: घर में वर्तन, फर्श आदि की सफाई तथा दीमक, मक्खी, मच्छर, चूहे आदि को नष्ट करने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले अपमार्जक पदार्थ जैसे- D. D. T., गैमेक्सीन, फिनाइल आदि अपशिष्ट पदार्थ के साथ में निकलते हैं; जो नदी व तालावों में जाकर यह पानी को दूषित करते है।
जल प्रदूषण की रोकथाम
अब हम आपको बताएँगे के water pollution in hindi यानि के जल प्रदूषण को कम करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
water pollution की रोकथाम करने के
लिए अगर हम निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखें तो यह काफी हद तक कम किया जा सकता है।
·
कूड़े-करकट, सड़े-गले पदार्थों का उचित प्रकार निस्तारण करना
चाहिए.
·
सीवर के
प्रदूषित जल को शहर से बाहर दोषरहित करके ही उपयोग करना चाहिए.
·
कारखानों
से निकलने वाले दूषित जल को सीधा नदी या तालावों में नहीं बहाना चाहिए वल्कि
प्रदुषण को कम करने के लिए उचित तकनीक का सहारा लेना चाहिए.
·
प्रदुषण
के नदी या समंद्र में निस्तारण पर रोक लगनी चाहिए.
·
झीलों
आदि में जल को शुद्द करने के लिए उचित उपाय करना चाहिए.
·
मृत जीव, राख आदि का निस्तारण नदी आदि में नहीं करना चाहिए.
· water pollution को कम करने के लिए आज हमें आधुनिक तकनीक का उपयोग करना बहुत जरूरी है और हमें करना भी चाहिए।
मृदा प्रदुषण किसे कहते हैं ?
प्रदूषित जल व वायु से मृदा प्रदूषित होती
है; मृदा का दूषित होना ही मृदा
प्रदुषण कहलाता है. वर्षा से सभी प्रदूषक मृदा में मिल जाते हैंवायु की SO3 तथा SO2 जल से मिलकर H2SO4,
S2SO3 बनाती है।
Pollution Essay in Hindi इसको अम्ल वर्षा कहते हैं।अधिक उपज प्राप्त करने के लिए और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है ।
इसके अलावा विभिन्न प्रकार के कवकनाशी, कीटनाशक तथा खरपतवार नाशी का छिड़काव पौधों पर किया जाता है यह पदार्थ मृदा को प्रदूषित कर के हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं ?
ध्वनि यानी के शोर एक अवांछित ध्वनि है। ज्यादातर शोर मनुष्य तथा अन्य जीव-जंतुओं पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसको पर्यावरण का प्रदूषण भी माना जाता है।
शोर की तीव्रता श्रवण शक्ति, शारीरिक संतुलन, मानसिक अवस्था आदि को स्थाई या अस्थाई रूप से प्रभावित कर सकता है कभी-कभी शोर की तीव्रता से हृदय गति तथा रक्तचाप “ब्लड प्रेशर” बढ़ने की संभावना भी रहती है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है ?
नाभिकीय विस्फोट आदि से निकले विभिन्न प्रकार के कणों तथा अल्फा बीटा गामा किरणों से उत्पन्न होता है . रेडियोधर्मी प्रदूषण प्रारंभ में अत्यधिक ताप उत्पन्न करता है जिससे जीव जंतु तथा वस्तुएं जल्दी नष्ट हो सकती हैं. रेडियोधर्मी प्रदूषण बहुत खतरनाक होता है।
Paryavaran Pradushan Par Nibandh में रेडियोधर्मी पदार्थों से पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के कल और किरण उत्पन्न होती हैं। परमाणु विस्फोटों ऊर्जा उत्पादन केंद्रों तथा आणविक परीक्षणों से पर्यावरण में रेडियोधर्मिता बढ़ने का खतरा रहता है।
इनसे मुख्य रूप से जल और वायु और मृदा का
प्रदूषण होता है जिससे जीवो में अनुवांशिक तथा भयानक रोग उत्पन्न हो सकता है जिससे
जीवो की मृत्यु का कारण भी बन सकता है। नाभिकीय विस्फोट में इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन
कणों के साथ अल्फा बीटा गामा किरणें भी निकलती हैं इनके द्वारा उत्परिवर्तन होते
हैं जो अनुवांशिक होते हैं.
परमाणु विस्फोट से अत्यधिक ताप तथा उसमें उत्पन्न होती है जो आसपास के पर्यावरण को जीवन के लिए प्रतिकूल बनाती है।
मनुष्य तथा अन्य जंतुओं पर प्रदूषण के प्रभाव
1: वायु प्रदूषण से एलर्जी, आंख लाल होना, सिर दर्द, उल्टी आना, चक्कर आना, रक्तचाप, चिड़चिड़ापन आदि रोग हो सकते हैं।
2: वायु प्रदूषण से
संक्रामक रोग भी फैलने का भय रहता है जैसे- तपेदिक, निमोनिया
जुकाम आदि हो जाते हैं।
3: औद्योगिक प्रदूषण से
निकलने वाली गैसों से अम्ल वर्षा तथा ग्रीन हाउस प्रभाव की संभावना बढ़ती है।
4: प्रदूषण का शारीरिक
प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इससे मानसिक थकावट और रक्तचाप और
अन्य मानसिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
5: जल प्रदूषण के कारण हैजा, अतिसार, आंत्रशोथ, संग्रहणी, टाइफाइड जैसे रोग हो जाते हैं।
6: औद्योगिक प्रदूषण जैसे
सीसा व पारा आदि से प्रदूषित जल के कारण जलीय जीव मर जाते हैं तथा उनके नेत्र व
मस्तिष्क रोग के होने काखतरा बना रहता है।प्रदूषित जंतुओं के प्रयोग से मनुष्य में
अनेक रोग हो जाते हैं।
7: फसल उत्पादन को
बढ़ाने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले कीट नाशी खरपतवारनाशी आदि रासायनिक खाद्य श्रंखला
के माध्यम से मनुष्य में पहुंचकर उसे हानि पहुंचाते हैं।
8: रेडियोधर्मी प्रदूषण
से कैंसर तथा अन्य अनुवांशिक जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो सकते हैं। तो यह था Paryavaran
Pradushan ke prakar Par Nibandh जो आपको कैसा लगा।